tag:blogger.com,1999:blog-73669680490246919072024-02-18T22:58:02.509-08:00" अंतःकरण " ...आंतरिक शक्ति, जो कराये सही-गलत की पहचान Unknownnoreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-44335166962630430972018-02-23T21:00:00.001-08:002018-02-23T21:00:06.406-08:00मांँ सरस्वती सांस्कृतिक क्लब का "होली मिलन समारोह" 25 फ़रवरी को<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-C49L1iiLnvKnj9yujd8TSx66YPtH9q7_mTe9beogteaG2SOhSz9i6y5siod6oZxmJqhS8wCHNQ1K2Bz-qsac7Zwbt-SSqIdq1EFY11V0-xdStWmSw-5mZSSDzw33iMkbUJ87dedSqrY/s1600/holi+hai.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="660" data-original-width="990" height="133" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-C49L1iiLnvKnj9yujd8TSx66YPtH9q7_mTe9beogteaG2SOhSz9i6y5siod6oZxmJqhS8wCHNQ1K2Bz-qsac7Zwbt-SSqIdq1EFY11V0-xdStWmSw-5mZSSDzw33iMkbUJ87dedSqrY/s200/holi+hai.jpeg" width="200" /></a></div>
<b>अलीगढ़</b>:नौरंगाबाद स्थित मांँ सरस्वती सांस्कृतिक क्लब के तत्वाधान में कार्यालय पर एक सभा का आयोजन किया गया। जिसमें कल 25 फ़रवरी को होने वाले "होली मिलन समारोह" पर चर्चा की गई।<br />
<a name='more'></a> सभा की अध्यक्षता क्लब की अध्यक्षा रेशू अग्रवाल ने की। सभा को सम्बोधित करते हुए अध्यक्षा रेशू अग्रवाल ने बताया कि रामघाट रोड स्थित आभा रेजेन्सी में "होली मिलन समारोह" का आयोजन किया जाएगा। समारोह संयोजक अधिवक्ता भुवनेश अग्रवाल ने बताया कि समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रम के अलावा अन्य अन्ताक्षरी, राधा-कृष्ण की झांकी एवं फूलों की होली खेली जाएगी। कार्यक्रम उपरान्त प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले बच्चों को पुरस्कृत किया जाएगा। उसके बाद क्लब की ओर से मीडियाकर्मियों का भी सम्मान किया जाएगा। महासचिव मधू पण्डित ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि जो सदस्य समारोह प्रतियोगिता में हिस्सा लेना चाहते हैं। वह संयोजक अधिवक्ता भुवनेश अग्रवाल से सम्पर्क कर सकते हैं। इस दौरान रेशू अग्रवाल, मधू पण्डित, भुवनेश अग्रवाल, ज्योति शर्मा, गगन अग्रवाल, दीपक पंडित, अखिलेश अग्रवाल, मुकेश कुमार गुप्ता, आकृति अग्रवाल, नरेन्द्र कुमार, सन्तोष अग्रवाल, प्रमोद शर्मा, स्वाति अग्रवाल, मिनी गर्ग, प्रगति अग्रवाल, साधना अग्रवाल आदि उपस्थित थे।<br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-90798110084314518962018-02-13T05:52:00.000-08:002018-02-13T05:52:06.486-08:00Mahashivaratri Festival<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjslnoSxBA2BlQW_9qg-55VFXrvLo85T1hUR3PGhVHhCO9HpaDlRwlWaT8x9gWZimgcTSoQV7hEZxU6-5DNILtyQVw-ojE_kplZRCGp_K7-VQgvOKuYwDoIvpJ0bTcHF0fumdkh-RYYE80/s1600/mahashivratri-festival.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="173" data-original-width="183" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjslnoSxBA2BlQW_9qg-55VFXrvLo85T1hUR3PGhVHhCO9HpaDlRwlWaT8x9gWZimgcTSoQV7hEZxU6-5DNILtyQVw-ojE_kplZRCGp_K7-VQgvOKuYwDoIvpJ0bTcHF0fumdkh-RYYE80/s1600/mahashivratri-festival.jpg" /></a></div>
Mahashivaratri Festival or the ‘The Night of Shiva’ is celebrated with devotion and religious fervor in honor of Lord Shiva, one of the deities of Hindu Trinity. Shivaratri falls on the moonless 14th night of the new moon in the Hindu month of Phalgun,<br />
<a name='more'></a> which corresponds to the month of February - March in English Calendar. Celebrating the festival of Shivaratri devotees observe day and night fast and perform ritual worship of Shiva Lingam to appease Lord Shiva.<br />
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Legends of Mahashivratri<br />
There are various interesting legends related to the festival of Maha Shivaratri. According to one of the most popular legends, Shivaratri marks the wedding day of Lord Shiva and Parvati. Some believe that it was on the auspicious night of Shivaratri that Lord Shiva performed the ‘Tandava’, the dance of the primal creation, preservation and destruction. Another popular Shivratri legend stated in Linga Purana states that it was on Shivaratri that Lord Shiva manifested himself in the form of a Linga. Hence the day is considered to be extremely auspicious by Shiva devotees and they celebrate it as Mahashivaratri - the grand night of Shiva.<br />
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Traditions and Customs of Shivaratri<br />
Mahashivaratri FestivalVarious traditions and customs related to Shivaratri Festival are dutifully followed by the worshippers of Lord Shiva. Devotees observe strict fast in honor of Shiva, though many go on a diet of fruits and milk some do not consume even a drop of water. Devotees strongly believe that sincere worship of Lord Shiva on the auspicious day of Shivaratri, absolves a person of sins and liberates him from the cycle of birth and death. Shivaratri is considered especially auspicious for women. While married women pray for the well being of their husbands unmarried women pray for a husband like Lord Shiva, who is regarded as the ideal husband.<br />
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To mark the Shivratri festival, devotees wake up early and take a ritual bath, preferably in river Ganga. After wearing fresh new clothes devotees visit the nearest Shiva temple to give ritual bath to the Shiva Lingum with milk, honey, water etc.<br />
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On Shivaratri, worship of Lord Shiva continues all through the day and night. Every three hours priests perform ritual pooja of Shiva lingam by bathing it with milk, yoghurt, honey, ghee, sugar and water amidst the chanting of “Om Namah Shivaya’ and ringing of temple bells. Nightlong vigil or jaagran is also observed in Shiva temples where large number of devotees spend the night singing hymns and devotional songs in praise of Lord Shiva. It is only on the following morning that devotee break their fast by partaking prasad offered to the deity.<br />
<b style="background-color: white; color: #333333; font-family: Georgia, Utopia, "Palatino Linotype", Palatino, serif; font-size: 14.49px;">साभार-</b>http://www.mahashivratri.org</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-85586742930984268412018-01-12T03:39:00.000-08:002018-01-12T03:41:04.487-08:00लोहड़ी के त्यौहार का इतिहास एवं महत्व <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4idoYYTlxveWEWjafltVFOjP-vr8ce6LIfUJ1vtc1Nqwo5ivU5fiVs3cjWMDiQCjLBnGP-ORneI_dUGDQwfFOqZkuN7ZdhXKrOM7pSKKXmSoJaY8EWflSYGhEgMtUB3C0XILcYgPkPTI/s1600/lohri.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="200" data-original-width="267" height="149" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4idoYYTlxveWEWjafltVFOjP-vr8ce6LIfUJ1vtc1Nqwo5ivU5fiVs3cjWMDiQCjLBnGP-ORneI_dUGDQwfFOqZkuN7ZdhXKrOM7pSKKXmSoJaY8EWflSYGhEgMtUB3C0XILcYgPkPTI/s200/lohri.jpg" width="200" /></a></div>
क्या आप लोहड़ी के त्यौहार का इतिहास एवं महत्व से परिचित हैं<br />
जनवरी महीना पुरे भारत वर्ष के लिए त्योहार लेकर आता है।<br />
<a name='more'></a>उत्तर भारत में पंजाबी समुदायलोहरी, दक्षिण भारत के लोग पोंगल और असम में बिहू पर्व मनाया जाता है।जबकि समस्त भारत के लोग मकर संक्रांति पर्व मानते है। इस तरह नया साल सबके जीवन में ढेर सारी खुशिया लेके आता है। इस तरह लोहरी की कथा सम्पन्न हुई।<br />
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पंजाब समेत उत्तर भारत में शुक्रवार को लोहड़ी का त्यौहार मनाया जा रहा है। इस त्यौहार पर लोग ढोल-नगाड़ों की धुन पर डांस मस्ती करते हैं। लोहड़ी के दिन शाम के समय लकड़ियों की ढेरी बना कर उसमें सूखे उपले रखकर विशेष पूजन के साथ लोहड़ी जलाई जाती है। तिल, गुड़, रेवड़ी और मूंगफली, गजक का भोग लगा कर लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। ऐसा करके सूर्य देव और अग्नि के प्रति आभार प्रकट किया जाता है ताकि उनकी कृपा से कृषि में उन्नत हो।<br />
लोहड़ी | मकर संक्रान्ति पर्व<br />
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लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। पंजाब एवं जम्मू–कश्मीर में ‘लोहड़ी’ नाम से मकर संक्रान्ति पर्व मनाया जाता है। एक प्रचलित लोककथा है कि मकर संक्रान्ति के दिन कंस ने कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था, जिसे कृष्ण ने खेल–खेल में ही मार डाला था। उसी घटना की स्मृति में लोहिता का पावन पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज में भी मकर संक्रान्ति से एक दिन पूर्व ‘लाल लाही’ के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है।<br />
क्यों मनाया जाता लोहड़ी है?<br />
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यह त्यौहार सर्दियों के जाने और बंसत के आने का संकेत है। इसलिए लोहड़ी की रात सबसे ठंडी मानी जाती है। इस दिन पंजाब में अलग ही रौनक देखने को मिलती है। लोहड़ी को फसलों का त्यौहार भी कहते हैं क्योंकि इस दिन पहली फसल कटकर तैयार होती है। पवित्र अग्नि में कुछ लोग अपनी रवि फसलों को अर्पित करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से फसल देवताओं तक पहुंचती है।<br />
कैसे मनाया जाता लोहड़ी है?<br />
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इस त्यौहार को पंजाब समेत उत्तर भारत के लोग खूब मौज मस्ती के साथ मनाते हैं। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उनके यहां लोहड़ी बेहद धूम धड़ाके से मनाई जाती है। कुछ लोग लोकगीत गाते हैं, महिलाएं गिद्दा करती हैं तो कुछ रेवड़ी, मूंगफली खाकर नाचते-गाते हैं। तो कहीं पूरा परिवार एक साथ मिलकर आग जलाकर, अग्निदेव से अपने परिवार की सुख शांति की कामना करता है।<br />
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संजीव भाई, स्वदेशी भारतीय संस्कृति : लोहड़ी भारतीय संस्कृति में छोटी- छोटी खुशियों का संग्रह है जिंदगी। मनुष्य ने मौसम, दिन, वातावरण, रीति- रिवाज, रिश्ते-नाते, प्यार -मोहब्बत, लगाव तथा परंपराओं आदि को ध्यान में रखते हुए हर्ष और उल्लास के अवसर के रूप में मेलों और त्योहारों का आयोजन शुरू किया। इन्हीं सब वजहों से हमारे त्योहार अस्तित्व में आए। अगर मनुष्य की जिंदगी से इन उत्सवपूर्ण दिनों को हटा दिया जाए तो उसकी सामाजिक जिंदगी बेहद नीरस और फीकी हो जाएगी।<br />
भारत के किन राज्यो में मनाया जाता लोहड़ी है?<br />
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मैंने महाराष्ट्र ,पंजाब, हिमाचल ,उत्तराखंड ,तमिलनाडु आदि प्रान्तों का मकरसंक्रांति लोहड़ी का उत्सव देखने का अवसर मिला है ।<br />
लोहड़ी शब्द लोही से बना है, जिसका अभिप्राय है वर्षा होना, फसलों का फूटना। एक लोकोक्ति है कि अगर लोहड़ी के समय वर्षा न हो तो खेती का नुकसान होता है। इस तरह यह त्योहार बुनियादी तौर पर मौसम के बदलाव तथा फसलों के बढ़ने से जुड़ा है। इस समय तक किसान हाड़ कंपाने वाली सर्दी में अपने जुताई-बुवाई जैसे सारे फसली काम कर चुके होते हैं। अब सिर्फ फसलों के बढ़ने और उनके पकने का इंतजार करना होता है। इसी समय से सर्दी भी घटने लगती है। इसलिए किसान इस त्योहार के माध्यम से इस सुखद, आशाओं से भरी परिस्थितियों को सेलिब्रेट करते हैं। पंजाब कृषि प्रधान राज्य है, वहां लोढ़ी किसानों, जमींदारों एवं मजदूरों की मेहनत का पर्याय है। वहां इसे सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाते हैं।<br />
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लोहड़ी माघ महीने की संक्रांति से पहली रात को मनाई जाती है। किसान सर्द ऋतु की फसलें बो कर आराम फरमाता है। इस दिन प्रत्येक घर में मूंगफली, रेवड़ियां, चिवड़े, गजक, भुग्गा, तिलचौली, मक्की के भुने दाने, गुड़, फल इत्यादि खाने और बांटने के लिए रखे जाते हैं। गन्ने के रस की खीर बनाई जाती है और उसे दही के साथ खाया जाता है। ये सारी चीजें इसी मौसम की उपज होती हैं और अपनी तासीर से शरीर को गर्मी पहुंचाती हैं।<br />
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इस दिन घरों के आंगनों, संस्थाओं, गलियों, मुहल्लों, बाजारों में खड़ी लकड़ियों के ढेर बना कर या उपलों का ढेर बना कर उस की आग जलाते हैं और उसे सेंकने का लुत्फ लेते हैं। चारों ओर बिखरी सर्दी तथा रुई की भांति फैली धुंध में आग सेंकने और उसके चारों ओर नाचने-गाने का अपना ही आनंद होता है। लोग इस आग में भी तिल इत्यादि फेंकते हैं। घरों में पूरा परिवार बैठकर हर्ष की अभिव्यक्ति के लिए गीत गायन करता है। देर रात तक ढोलक की आवाज, ढोल के फड़कते ताल, गिद्दों-भंगड़ों की धमक तथा गीतों की आवाज सुनाई देती रहती है। रिश्तों की सुरभि तथा आपसी प्यार का नजारा चारों ओर देखने को मिलता है। एक संपूर्ण खुशी का आलम।<br />
<b>साभार-https://tours-package.com</b> </div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-53530302399282806572017-12-28T04:13:00.005-08:002017-12-28T04:13:54.714-08:00The signs of Sikh Gurus reached Agra Gurdwara Guru ka taal<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtxxOe79eCaFBVHVX-oK7YNbRxf_e9ChfTvXm2nua5nZP-ElAoxD4OOqTgKE0iMpfnP80qobctO4zFL9vmMGDVuFOSuijrU7K8FXVQ_ZYGBBbHgkWU00CwFRrHoaylSALBVGD61aohA0A/s1600/agra+sikh+guru+nishaniyan.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="780" data-original-width="1040" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtxxOe79eCaFBVHVX-oK7YNbRxf_e9ChfTvXm2nua5nZP-ElAoxD4OOqTgKE0iMpfnP80qobctO4zFL9vmMGDVuFOSuijrU7K8FXVQ_ZYGBBbHgkWU00CwFRrHoaylSALBVGD61aohA0A/s200/agra+sikh+guru+nishaniyan.jpg" width="200" /></a></div>
<b>Agra:</b>सरबंस दानी सिक्खो के दसवे गुरु गुरु गोविन्द सिंह के ३५१ वें प्रकाश पर्व में भाग लेने के पश्चात उनकी ,उनके पिता नोवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी एवं छठवे गुरु गुरु हरगोविंद साहिब जी की निशानियां आज ऐतहासिक गुरुद्वारा गुरु के ताल पर पहुंची।<br />
<a name='more'></a> उनकी निशानियां तख़्त श्री केश गढ़ साहिब श्री आनन्द पुर साहिब में विधमान है, जो आज तख़्त पटना साहिब से आगरा नगर कीर्तन के रूप में पहुँच गए । जत्थे की अगुवाई मीत मैनेजर भाई अमरजीत सिंह एवं भाई गुरविंदर सिंह कर रहे हैं। गुरुद्वारा गुरु के ताल के मीडिया प्रभारी मास्टर गुरनाम सिंह एवं समन्वयक बन्टी ग्रोवर ने बताया कि इस रथ में श्री गुरु गोविन्द सिंह जी के चोला ,सीरी साहिब ,कृपाण ,दस्तार ,केश ,कंघा ,हस्त लिखित श्री पोथी साहिब ,छोटी कृपाण ,बरछा ,5 तीर , साथ में ही नोवें पातिशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी की कृपाण ,साथ में छठवे गुरु गुरु हरगोविंद पतिशाह के तेगा ओर चाबुक(कोड़ा ) हैं ।यह नगर कीर्तन प्रातः 7 बजे गुरु के ताल से श्री आनंद पुर साहिब की ओर रवाना होगा. गुरुद्वारा गुरु के ताल के मौजूदा मुखी संत बाबा प्रीतम सिंह जी ने सभी आगरा निवासियों को गुरु जी की निशानियों के दर्शन करने की अपील की है।<br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-4077700999313708682017-12-23T03:26:00.000-08:002017-12-23T07:00:36.070-08:00आइआइएमटी में हुआ क्रिसमस कैक उत्सव <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbAjic7V7FY8CUe7wytqwzb79HL2RR5iv-q5_ndpro9vxesLVk4aupKtQLFjPDSgArFCOQw8yQOtlHcIiZAErhZZ9voafBpgcleWTK1UgBtLwHfsi8q3DFsHFACpnMCfvRqrhwplbsy3w/s1600/christmas+par+cack+kat+te+huai.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="1201" data-original-width="1600" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbAjic7V7FY8CUe7wytqwzb79HL2RR5iv-q5_ndpro9vxesLVk4aupKtQLFjPDSgArFCOQw8yQOtlHcIiZAErhZZ9voafBpgcleWTK1UgBtLwHfsi8q3DFsHFACpnMCfvRqrhwplbsy3w/s200/christmas+par+cack+kat+te+huai.jpg" width="200" /></a></div>
<b>अलीगढ़</b>:इंस्टीट्यूट आॅफ इन्फोरमेशन मैनेजमेंट एण्ड टैक्नोलाॅजी, अलीगढ़ के बीटीसी संकाय के छात्र-छात्राओं ने प्रभु यीशु के बर्थडे पर कक्षाओं को सांता क्लाॅस, मैरी क्रिसमस, टाॅफी, गिफ्ट के चित्रों से सजाया और मैरी क्रिसमस का कैक काटकर एक दूसरे को खिलाया।<br />
<a name='more'></a>बीटीसी प्राचार्या डाॅ अजीता सिंह ने कहा कि “ जीसस क्राइस्ट एक महान व्यक्ति थे। उन्होंने समाज को प्यार और इंसानियत की शिक्षा दी। उन्होंने लोगों को प्रेम और भाईचारे के साथ रहने का संदेश दिया था। ” साथ ही शिक्षक-शिक्षा संकाय में “ हैप्पी क्रिसमस “ विषय पर चार्ट मैकिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। निर्णायक डाॅ अंजू सक्सैना, डाॅ अजीता सिंह, डाॅ एस.एफ. उस्मानी ने बताया कि “ रिचा माहौर प्रथम, अन्नू गोयल द्वितीय, ममता कुमारी तृतीय रहीं। इस दौरान डाॅ सुनील चैहान, डाॅ एस.के. गुप्ता, डाॅ अनुपम राघव, डाॅ गीता शर्मा, सचिन शर्मा,, सुप्राची शर्मा, प्रो सर्वेश देवी, मधु चाहर, आकांक्षा, डाॅ सुमनलता गौतम, दीप शिखा, चमन शर्मा उपस्थित थे।</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-45476048978569259542017-12-22T03:05:00.002-08:002017-12-22T03:05:31.626-08:00क्रिसमस के रंग में रंगा शांतिनिकेतन, प्रभु यीशु ने लिया जन्म <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBOWQhIhYi-di5vHFTMUcvGOx_95yPLuz1mj3Mw6bPUa54BJG8RzLY4MEo1C_sl0olv2Bx9ydvyGv_593d9EgQKyGGpF5QIiKmYzfusdOtoKhRphyphenhyphen80I60jgcQSHza6CYPmA4D-y4C7ig/s1600/nanhe+saintaclos.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="498" data-original-width="810" height="122" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBOWQhIhYi-di5vHFTMUcvGOx_95yPLuz1mj3Mw6bPUa54BJG8RzLY4MEo1C_sl0olv2Bx9ydvyGv_593d9EgQKyGGpF5QIiKmYzfusdOtoKhRphyphenhyphen80I60jgcQSHza6CYPmA4D-y4C7ig/s200/nanhe+saintaclos.jpg" width="200" /></a></div>
<b>अलीगढ़:</b>शांतिनिकेतन वल्र्ड स्कूल में क्रिसमस सेलिब्रेशन का शुभारम्भ आईआईएमटी सचिव पंकज महलवार, शांतिनिकेतन निदेशिका शालिनी महलवार, प्रधानाचार्य एल.के.पीटर, समाज सेविका रतना गुप्ता, हैड मिस्ट्रेस तब्सुम अशरफ, प्रशासनिक अधिकारी जितेंद्र यादव ने दीप प्रज्जवलित कर किया।<br />
<a name='more'></a> निदेशिका शालिनी महलवार ने कहा कि श्क्रिसमस प्रभु यीशु की याद में मनाया जाने वाला पर्व है। प्रभु यीशु के जीवन से त्याग व सद्चरित्र व्यक्तित्व की झलक मिलती है। क्रिसमस सेलिब्रेशन पर बच्चों को एक अच्छी संतान, छात्र व इंसान बनने का संकल्प लेना चाहिए। श् आकाश, जल, पृथ्वी, सूर्य हाउस के बच्चों ने अपनी कक्षाओं को इस कदर सजाया कि मानो वहां प्रभु यीशु अवतरित हुऐ हों। जूनियर बच्चों ने लाल टोपी व लाल पोशाक में सांता क्लाॅस का रूप रखकर खूब एन्जाॅय किया। प्रभु यीशु के जन्म पर आधारित नाटक में प्रभु यीशु के जन्म गाथा का मंचन किया गया। “ जिंगल वैल, जिंगल वैल..., आया क्रिसमस...” आदि गीत पर बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों से शांतिनिकेतन को क्रिसमस के रंगों में रंग दिया। बच्चों के मध्य पोस्टर मैकिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। निर्णायक डाॅ बरखा राघव, सकलैन जैदी ने बताया कि “ पोस्टर मैकिंग में निशांत, मोनिका, सगुन, तनिश, एकता, प्रियंका, सुंदरम, कृष्णा, चारू, तृप्ती को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया। ” इस दौरान फरहा शेरवानी, पारूल दानिश, अलीम जाफरी, दीपक राजपूत, नैना भटनागर, अमित दयाल, अलका अरोरा, साधना वाष्र्णेय, शीतल चैधरी, शैरी जाॅन, आकांक्षा चंद्रा, संगीता शर्मा, सल्तनत मिर्जा, वैशाली वशिष्टठ, प्रशांत जैन, विमल शर्मा, ईला सक्सैना, मो नदीम, चमन शर्मा उपस्थित थे। <br /><br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-92146528404849663232017-12-12T03:57:00.001-08:002017-12-13T03:30:18.668-08:00अम्बाजी : गुजरात का भव्य प्राचीन मंदिर... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjYYqNZsqW37ETBj3E49BKB7LAOg7h6zxM-vs6V2b2pcQydisXuPljz6YtxMDBxp0oSliEQIjRv3Cn3i9eVPiUZ49ypB80fInCzZONXzgL8BxyJJYq6SCYiF5H7t_AX8qjGJ8JqqOgU6bA/s1600/ambaji+mandir.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="354" data-original-width="630" height="111" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjYYqNZsqW37ETBj3E49BKB7LAOg7h6zxM-vs6V2b2pcQydisXuPljz6YtxMDBxp0oSliEQIjRv3Cn3i9eVPiUZ49ypB80fInCzZONXzgL8BxyJJYq6SCYiF5H7t_AX8qjGJ8JqqOgU6bA/s200/ambaji+mandir.jpg" width="200" /></a></div>
<span style="color: red;"><span style="color: lime;">या देवीसर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता<br />नमस्तस्यै-नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः...</span></span>गुजरात का अम्बाजी मंदिर बेहद प्राचीन है। मां अम्बा-भवानी के<br />
<a name='more'></a>शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर के प्रति मां के भक्तों में अपार श्रद्धा है। इस मंदिर के गर्भगृह में मां की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है। शक्ति के उपासकों के लिए यह मंदिर बहुत महत्व रखता है।<br />
यहां मां का एक श्रीयंत्र स्थापित है। इस श्रीयंत्र को कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि मां अम्बे यहां साक्षात विराजी हैं। अम्बाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था। वहीं भगवान राम भी शक्ति की उपासना के लिए यहां आ चुके हैं।<br />
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मां अम्बाजी मंदिर गुजरात-राजस्थान सीमा पर स्थित है। माना जाता है कि यह मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है। इस मंदिर के जीर्णोद्धार का काम 1975 से शुरू हुआ था और तब से अब तक जारी है। श्वेत संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बेहद भव्य है। मंदिर का शिखर एक सौ तीन फुट ऊंचा है। शिखर पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं।<br />
मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर गब्बर नामक पहाड़ है। इस पहाड़ पर भी देवी मां का प्राचीन मंदिर स्थापित है। माना जाता है यहां एक पत्थर पर मां के पदचिह्न बने हैं। पदचिह्नों के साथ-साथ मां के रथचिह्न भी बने हैं। अम्बाजी के दर्शन के उपरान्त श्रद्धालु गब्बर जरूर जाते हैं। हर साल भाद्रपदी पूर्णिमा के मौके पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं। भाद्रपदी पूर्णिमा को इस मंदिर में एकत्रित होने वाले श्रद्धालु पास में ही स्थित गब्बरगढ़ नामक पर्वत श्रृंखला पर भी जाते हैं, जो इस मंदिर से दो मील दूर पश्चिम की दिशा में स्थित है। प्रत्येक माह पूर्णिमा और अष्टमी तिथि पर यहां मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यहां फोटोग्राफी निषेध है।<br />
शक्तिस्वरूपा अम्बाजी देश के अत्यंत प्राचीन 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। वस्तुतः हिन्दू धर्म के प्रमुख बारह शक्तिपीठ हैं। इनमें से कुछ शक्तिपीठ हैं- कांचीपुरम का कामाक्षी मंदिर, मलयगिरि का ब्रह्मारंब मंदिर, कन्याकुमारी का कुमारिका मंदिर, अमर्त-गुजरात स्थित अम्बाजी का मंदिर, कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर, प्रयाग का देवी ललिता का मंदिर, विंध्या स्थित विंध्यवासिनी माता का मंदिर, वाराणसी की मां विशालाक्षी का मंदिर, गया स्थित मंगलावती और बंगाल की सुंदर भवानी और असम की कामख्या देवी का मंदिर। ज्ञात हो कि सभी शक्तिपीठों में मां के अंग गिरे हैं।<br />
नवरात्रि में यहां का वातावरण आकर्षक और शक्तिमय रहता है। नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि पर्व में श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस समय मंदिर प्रांगण में गरबा करके शक्ति की आराधना की जाती है। समूचे गुजरात से कृषक अपने परिवार के सदस्यों के साथ मां के दर्शन के लिए एकत्रित होते हैं। व्यापक स्तर पर मनाए जाने वाले इस समारोह में ‘भवई’ और ‘गरबा’ जैसे नृत्यों का प्रबंध किया जाता है। साथ ही यहां पर ‘सप्तशती’ (मां की सात सौ स्तुतियां) का पाठ भी आयोजित किया जाता है।<br />
इसके अलावा यहां अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं, जिसमें सनसेट प्वाइंट, गुफाएं, माताजी के झूले आदि भी देखने योग्य स्थल है।<br />
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कैसे पहुंचें- गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित विख्यात तीर्थस्थल अम्बाजी मंदिर मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक है तथा यहां वर्षपर्यंत भक्तों का रेला लगा रहता है।<br />
अम्बाजी मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है। आप यहां राजस्थान या गुजरात जिस भी रास्ते से चाहें पहुंच सकते हैं। यहां से सबसे नजदीक स्टेशन माउंटआबू का पड़ता है।<br />
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आप अहमदाबाद से हवाई सफर भी कर सकते हैं। अम्बाजी मंदिर अहमदाबाद से 180 किलोमीटर और माउंटआबू से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।<br />
<b>साभार-http://hindi.webdunia.com</b></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-24493720943823631712017-10-17T03:33:00.002-07:002017-10-17T03:33:25.830-07:00रोशनी का पर्व दिवाली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJGm8Ywl9Pm9rF0HAsuTdO_geE-irQF5fFFLl66rFqyjOxOmUr0XhmQHCRRSWV_hLCK4woJqT8xzJSqMY6vd6IszlVJ7Oa53fK5EmiRZ23so4XfFZyd4po2iDQQL2V112Ca9l-fLMfE8E/s1600/diwali.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="200" data-original-width="360" height="110" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJGm8Ywl9Pm9rF0HAsuTdO_geE-irQF5fFFLl66rFqyjOxOmUr0XhmQHCRRSWV_hLCK4woJqT8xzJSqMY6vd6IszlVJ7Oa53fK5EmiRZ23so4XfFZyd4po2iDQQL2V112Ca9l-fLMfE8E/s200/diwali.jpg" width="200" /></a></div>
दिवाली हिन्दू धर्म का मुख्य पर्व है। रोशनी का पर्व दिवाली कार्तिक अमावस्या के दिन मनाया जाता है। दिवाली को दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि दीपों से सजी इस रात में लक्ष्मीजी भ्रमण के लिए निकलती हैं और अपने भक्तों को खुशियां बांटती हैं।<br />
<a name='more'></a> दिवाली मनाने के पीछे मुख्य कथा विष्णुजी के रूप भगवान श्री राम से जुड़ी है। <br /><br /><span style="color: lime;">दिवाली 2017 </span><br />इस साल दीपावली या दिवाली 19 अक्टूबर को मनाई जाएगी। वर्ष 2017 में नरक चतुर्दशी/छोटी दिवाली अक्टूबर 18 मनाई जाएगी।<br /><br />यह माना जाता है कि जब भगवान राम अयोध्या पहुंचे थे तब पूरे शहर को हजारों तेल के दीपकों (दीया) को जला कर उनका स्वागत किया गया था। पूरी अयोध्या को फूलों और सुंदर रंगोली से सजाया गया था। तब से, दिवाली को रोशनी का त्योहार कहा जाता है। भगवान राम का अपने घरों में स्वागत करने के लिए लोग तेल के लैंप के साथ सजावट करते हैं यही कारण है कि इस त्योहार को 'दीपावली' भी कहा जाता है। तेल के दीयों की परंपरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। लोग अपने घरों के प्रवेश द्वार पर सुंदर रंगोली और पादुका (पादलेख) चित्रण करके देवी लक्ष्मी का स्वागत करते हैं। दिवाली के त्योहार को मनाने के लिए लोग दोस्तों, रिश्तेदार और पड़ोसियों को मिठाई और फल बांटते है। <br /><br />दिवाली का जश्न पांच दिनों की अवधि में फैला हुआ है जिसमे प्रत्येक दिन का अपना महत्व है और जिसमे परंपरागत अनुष्ठानों का पालन किया जाता है। जश्न 'धनतेरस' के साथ आरम्भ होता है, यह वह शुभ दिन है जिसमे पर लोग बर्तन, चांदी के बर्तन या सोना खरीदते हैं। यह माना जाता है कि नए "धन" या कीमती वास्तु की खरीदार शुभ हैं। इसके बाद छोटी दिवाली आती है जिसमें बड़ी दिवाली की तैयारी होती है। लोग अपने घरों को सजाने की शुरुआत करते हैं, और एक दुसरे से मिलते-जुलते है। अगले दिन बड़ी दीवाली मनाई जाती है। वर्ष 2017 में बड़ी दिवाली 19 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन, लोग लक्ष्मी पूजा करते हैं, मिठाई और उपहार के साथ एक दूसरे के घर जाते हैं, पटाखे जलाते हैं और अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताते हैं। दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है और अंततः पांच दिवसीय उत्सव भाई दूज के साथ समाप्त होता है जहां बहने अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं और भाई बहन एक-दूसरे की भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं।<br /><br /><span style="color: blue;">छोटी दिवाली के पीछे की कहानी</span><br /><br />दंतकथाओं के अनुसार नरकासुर नाम का एक राक्षस था जो प्रागज्योतिषपुर राज्य का राजा था। उसने इंद्र को युद्ध में परास्त करके माँ देवी की कान की बालियों को छीन लिया था। येही नहीं उसने देवताओं और रिशिओं की 16 हज़ार बेटियों का अपहरण करके उनको अपने इस्त्रिग्रह में बंदी बना रखा था। इस्त्रियों के प्रति नरकासुर के द्वेष को देख कर सत्यभामा ने कृष्णा से यह निवेदन किया की उन्हें नरकासुर का वध करने का अवसर प्रदान किया जाये। यह भी मान्यता है की नरकासुर को यह श्राप था की उसकी मृत्यु एक इस्त्री के हाथ ही होगी। सत्यभामा कृष्ण द्वारा चलाय जा रहे रथ में बेठ कर युद्ध करने के लिए गयी। उस युद्ध में सत्यभामा ने नरकासुर को परास्त करके उसका वध किया और सभी कन्याओं को छुडवा लिया।<br /><br />इसी दिन को नरका चतुर्दशी कहते है। छोटी दिवाली भी इसी दिन मनाई जाती है। इसका कारण यह है ही नरकासुर की माता भूदेवी ने यीह घोषणा की थी की उसके पुत्र की मृत्यु के दिन को मातम के तौर पर नहीं बल्कि त्यौहार के तौर पर याद रखा जाये।<br /><br /><br /><span style="color: magenta;">दीपावली पर्व के पीछे कथा </span><br />अपने प्रिय राजा श्री राम के वनवास समाप्त होने की खुशी में अयोध्यावासियों ने कार्तिक अमावस्या की रात्रि में घी के दिए जलाकर उत्सव मनाया था। तभी से हर वर्ष दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस त्यौहार का वर्णन विष्णु पुराण के साथ-साथ अन्य कई पुराणों में किया गया है।<br /><br /><span style="color: #cc0000;">दीपावली पर लक्ष्मी पूजा </span><br />अधिकांश घरों में दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा (Laxmi Puja on Diwali) की जाती है। हिन्दू मान्यतानुसार अमावस्या की रात्रि में लक्ष्मी जी धरती पर भ्रमण करती हैं और लोगों को वैभव का आशीष देती है। दीपावली के दिन गणेश जी की पूजा का यूं तो कोई उल्लेख नहीं परंतु उनकी पूजा के बिना हर पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए लक्ष्मी जी के साथ विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की भी पूजा की जाती है। <br /><br /><br /><span style="color: orange;">दीपदान </span><br />दीपावली के दिन दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। नारदपुराण के अनुसार इस दिन मंदिर, घर, नदी, बगीचा, वृक्ष, गौशाला तथा बाजार में दीपदान देना शुभ माना जाता है। <br />मान्यता है कि इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है तो, उसके घर में कभी भी दरिद्रता का वास नहीं होता। इस दिन गायों के सींग आदि को रंगकर उन्हें घास और अन्न देकर प्रदक्षिणा की जाती है। <br /><br /><br />दीपावली पर्व भारतीय सभ्यता की एक अनोखी छठा को पेश करता है। आज अवश्य पटाखों की शोर में माता लक्ष्मी की आरती का शोर कम हो गया है लेकिन इसके पीछे की मूल भावना आज भी बनी हुई है। <br /><b>साभार-http://dharm.raftaar.in</b><br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-21396662765606842472017-10-16T04:21:00.000-07:002017-10-16T04:21:49.267-07:00चली जा रही है उमर धीरे धीरे भजन - श्री प्रेमभूषण जी महाराज श्रीराम कथा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<iframe width="320" height="266" class="YOUTUBE-iframe-video" data-thumbnail-src="https://i.ytimg.com/vi/x7BHAZN_MjQ/0.jpg" src="https://www.youtube.com/embed/x7BHAZN_MjQ?feature=player_embedded" frameborder="0" allowfullscreen></iframe></div>
<br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-71184267596401016672017-10-14T04:21:00.001-07:002017-10-14T04:21:09.065-07:00धनतेरस...दिवाली के त्यौहार की शुरुआत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOg4XFR9YDPes-Ix5Z139GrHJjp60bV9cU373TdEqs-F2y6TbNoAGNpy2cqqZ-a-4bMkjMFqtY5v2r7TqGGnCdHPx5bv0alKK6AZwqKThoQyrWJwBzBwbDlTLP7MBtU1pzY7bicPF9VIw/s1600/dhanteras.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="194" data-original-width="259" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOg4XFR9YDPes-Ix5Z139GrHJjp60bV9cU373TdEqs-F2y6TbNoAGNpy2cqqZ-a-4bMkjMFqtY5v2r7TqGGnCdHPx5bv0alKK6AZwqKThoQyrWJwBzBwbDlTLP7MBtU1pzY7bicPF9VIw/s1600/dhanteras.jpg" /></a></div>
दिवाली के त्यौहार की शुरुआत धन तेरस से होती है। धन का मतलब पैसा और सम्पति होता है और तेरस कृष्णा पक्ष का तेरवां दिन है। यह कार्तिक मॉस में आता है। हिन्दू समाज में धनतेरस सुख-समृद्धि, यश और वैभव का पर्व माना जाता है।<br />
<a name='more'></a> इस दिन धन के देवता कुबेर और आयुर्वेद के देव धन्वंतरि की पूजा का बड़ा महत्त्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाए जाने वाले इस महापर्व के बारे में स्कन्द पुराण में लिखा है कि इसी दिन देवताओं के वैद्य धन्वंतरि अमृत कलश सहित सागर मंथन से प्रकट हुए थे, जिस कारण इस दिन धनतेरस के साथ-साथ धन्वंतरि जयंती भी मनाई जाती है।<br /><br />धनतेरस पूजा विधि <br /><br /> एक लकड़ी के बेंच पर रोली के माध्यम से स्वस्तिक का निशान बनाये।<br /> फिर एक मिटटी के दिए को उस बेंच पर रख कर जलाएं।<br /> दिए के आस पास तीन बारी गंगा जल का छिडकाव करें।<br /> दिए पर रोली का तिलक लगायें। उसके बाद तिलक पर चावल रखें।<br /> दिए में थोड़ी चीनी डालें।<br /> इसके बाद 1 रुपये का सिक्का दिए में डालें।<br /> दिए पर थोड़े फूल चढायें।<br /> दिए को प्रणाम करें।<br /> परिवार के सदस्यों को तिलक लगायें।<br /> अब दिए को अपने घर के गेट के पास रखें। उसे दाहिने तरह रखें और यह सुनिश्चित करें की दिए की लौं दक्षिण दिशा की तरफ हो।<br /> इसके बाद यम देव के लिए मिटटी का दिया जलायें और फिर धन्वान्तारी पूजा घर में करें।<br /> अपने पूजा घर में भेठ कर धन्वान्तारी मंत्र का 108 बार जाप करें। “ॐ धन धनवंतारये नमः<br /> जब आप 108 बारी मंत्र का जाप कर चुके होंगे तब इन पंक्तियों का उच्चारण करें “है धन्वान्तारी देवता में इन पंक्तियों का उच्चारण अपने चरणों में अर्पण करता हूँ।<br /> धन्वान्तारी पूजा के बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पंचोपचार पूजा करना अनिवार्य है।<br /> भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के लिए मिटटी के दियें जलाएं। धुप जलाकर उनकी पूजा करें। भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के चरणों में फूल चढायें और मिठाई का भोग लगायें।<br /><br />धनतेरस 2017<br />साल 2017 में धनतेरस का त्यौहार 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा। <br /><br />धनतेरस के दिन खरीददारी<br />नई चीजों के शुभ आगमन के इस पर्व में मुख्य रूप से नए बर्तन या सोना-चांदी खरीदने की परंपरा है। आस्थावान भक्तों के अनुसार चूंकि जन्म के समय धन्वंतरि जी के हाथों में अमृत का कलश था, इसलिए इस दिन बर्तन खरीदना अति शुभ होता है। विशेषकर पीतल के बर्तन खरीदना बेहद शुभ माना जाता है।<br /><br />धनतेरस कथा <br />कहा जाता है कि इसी दिन यमराज से राजा हिम के पुत्र की रक्षा उसकी पत्नी ने किया था, जिस कारण दीपावली से दो दिन पहले मनाए जाने वाले ऐश्वर्य का त्यौहार धनतेरस पर सायंकाल को यम देव के निमित्त दीपदान किया जाता है। इस दिन को यमदीप दान भी कहा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है और पूरा परिवार स्वस्थ रहता है। इस दिन घरों को साफ-सफाई, लीप-पोत कर स्वच्छ और पवित्र बनाया जाता है और फिर शाम के समय रंगोली बना दीपक जलाकर धन और वैभव की देवी मां लक्ष्मी का आवाहन किया जाता है।<br /><b>साभार-http://dharm.raftaar.in</b><br /><br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-44124222465133857672017-10-09T04:38:00.001-07:002017-10-09T04:38:25.626-07:00प्रवचन...किसी से इतनी भी मत बिगाड़ो की ज़िन्दगी में उसकी जरुरत पड़े तो नज़र भी न मिला पाओ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<iframe width="320" height="266" class="YOUTUBE-iframe-video" data-thumbnail-src="https://i.ytimg.com/vi/E9-xxgQg2XU/0.jpg" src="https://www.youtube.com/embed/E9-xxgQg2XU?feature=player_embedded" frameborder="0" allowfullscreen></iframe></div>
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Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-53724666029925683122017-10-08T03:26:00.001-07:002017-10-08T03:26:21.483-07:00प्रवचन...माँ बाप को तुम ना भूलना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<iframe width="320" height="266" class="YOUTUBE-iframe-video" data-thumbnail-src="https://i.ytimg.com/vi/0d7FZTrQB58/0.jpg" src="https://www.youtube.com/embed/0d7FZTrQB58?feature=player_embedded" frameborder="0" allowfullscreen></iframe></div>
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Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-648869170812339172017-10-07T03:49:00.001-07:002017-10-07T03:49:17.658-07:00करवा चौथ कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<iframe width="320" height="266" class="YOUTUBE-iframe-video" data-thumbnail-src="https://i.ytimg.com/vi/1zKV-Gt1TIU/0.jpg" src="https://www.youtube.com/embed/1zKV-Gt1TIU?feature=player_embedded" frameborder="0" allowfullscreen></iframe></div>
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Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-66806644061962893802017-10-03T05:08:00.001-07:002017-10-03T05:08:47.973-07:00करवा चौथ में किस तरह से करनी होती है पूजा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglUwMiojZop2NfdJu2LtQFbE7wkjZ6OTpTY6zHHba074nN5Cc5Qj5L7PY0-6cdc0AsZV5FeU1yAlqcq-8QmjYamF9wv9NJPDJ6L_syikku26h-eQwpUSZJFQhWwTyS5ii76-XMt_rJtd0/s1600/karwa-chauth.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="150" data-original-width="324" height="148" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglUwMiojZop2NfdJu2LtQFbE7wkjZ6OTpTY6zHHba074nN5Cc5Qj5L7PY0-6cdc0AsZV5FeU1yAlqcq-8QmjYamF9wv9NJPDJ6L_syikku26h-eQwpUSZJFQhWwTyS5ii76-XMt_rJtd0/s320/karwa-chauth.jpg" width="320" /></a></div>
करवा चौथ यानी पति की लम्बी उम्र के लिए रखे जाने वाले व्रत का दिन होता है। छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।<br />
<a name='more'></a> इससे जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। साथ ही साथ इससे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणोश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर पूजा होती है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल,उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए।<br /><br /><br />महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इस प्रकार की कथाओं से करवा चौथ का महत्त्व हम सबके सामने आ जाता है।<br /><br />यदि आपके दांपत्य जीवन में किसी भी तरह की परेशानी चल रही है... या फिर जानना चाहते हैं कि करवा चौथ का व्रत आपके लिये फलदायी कैसे रहेगा तो इसके लिये भारत के जाने-माने ज्योतिषाचार्यों से परामर्श कर सकते हैं। परामर्श करने के लिये यहां क्लिक करें।<br /><br />महत्त्व के बाद बात आती है कि करवा चौथ की पूजा विधि क्या है? किसी भी व्रत में पूजन विधि का बहुत महत्त्व होता है। अगर सही विधि पूर्वक पूजा नहीं की जाती है तो इससे पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है। तो आइये जानते हैं करवा चौथ की पूजन सामग्री और व्रत की विधि- <br /><br /> <b>करवा चौथ पर्व की पूजन सामग्री</b><br /><br />कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे।<br /><br />सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें। व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें तथा शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।<br /><br /><b>करवा चौथ पूजन विधि</b><br /><br />प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें।<br /><br />व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें।<br /><br />व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-<br /><br />प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है- 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'<br /><br />घर के मंदिर की दीवार पर गेरू से फलक बनाकर चावलों को पीसे। फिर इस घोल से करवा चित्रित करें। इस रीती को करवा धरना कहा जाता है।<br /><br />शाम के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें लकड़ी के आसार पर बिठाए।<br /><br />माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।<br /><br />भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें।<br /><br />सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें।<br /><br />सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें।<br /><br />पति, सास-ससुर सब का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें।<br /><br /><b>करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा </b><br />बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। <br /><br />शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।<br />सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।<br /><br />इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।<br />वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।<br /><br />उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।<br />सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।<br />एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।<br /><br />इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।<br />सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।<br /><br />अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।<br />हे श्री गणेश- मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले। <br /><br /><b>साभार-<br />https://hindi.astroyogi.com<br />http://hindi.webdunia.com</b><br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-75947607371010718302017-09-30T02:47:00.003-07:002017-09-30T02:47:34.015-07:00आगरा के गुरुद्वारा गुरु का ताल में गुरमत समागम <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmfshDF44bIyc7Hh2ALJIpt-LNcFbyoz2FMI8fz0U1XDJ7k4-zHm6fLdhBHEnWtVRLdVxYWDbqcEcriCUD914Posbi0UhoDGqf8uo_W-9mX1nixrrRyTrUCZWOQqFWqrjvohaN1EpBze0/s1600/pc+agra.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="150" data-original-width="331" height="145" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmfshDF44bIyc7Hh2ALJIpt-LNcFbyoz2FMI8fz0U1XDJ7k4-zHm6fLdhBHEnWtVRLdVxYWDbqcEcriCUD914Posbi0UhoDGqf8uo_W-9mX1nixrrRyTrUCZWOQqFWqrjvohaN1EpBze0/s320/pc+agra.jpg" width="320" /></a></div>
<b>आगरा।</b> ऐतिहासिक गुरुद्वारा गुरु का ताल में तीन दिवसीय गुरुमत समागम की शुरुआत शनिवार को होने जा रही है। जिसमें देश विदेश के अलावा यू पी, उत्तराखण्ड, राजिस्थान,पंजाब,एम पी,के साथ कई प्रदेशों के श्रद्धालु शामिल होंगे।<br />
<a name='more'></a> ये जानकारी गुरुद्वारा गुरु का ताल में आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए बाबा प्रीतम सिंह ने दी। उन्होंने ये भी बताया कि महान परोपकारी सेवा के पुंज संत बाबा साधू सिंह जी मोनी व् संत बाबा निरंजन सिंह जी जिन्होंने अपना पूरा जीवन गुरु महाराज की आज्ञानुसार गुरु घर की सेवा और सिमरन में व्यतीत किया । उनकी याद में तीस वां गुरमत सालाना दिनाक 1 अक्टूबर से 3 अक्टूबर तक भाई नन्द लाल जी समागम हॉल में बड़ी श्रद्धा एवं भक्ति पूर्ण वातावरण में मनाया जायेगा । जिसमे सिंह साहिब ,कथा वाचक एवं पंथ प्रसिद्ध कीर्तनिये एवम प्रचारक संगत को गुरु घर से जोड़ेंगे । संत बाबा साधू सिंह जी मोनी जी के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा की बाबा जी ने रक्खड़ पूर्णिमा के दिन सन् 1971 में गुरुद्वारा गुरु के ताल की सेवा अपने हाथ में ली ।<br />अकाल पुरख के आदेशानुसार 3 अक्टूबर 1987 को आप शरीर त्याग कर गुरु महाराज के चरणों में जा विराजे । उनकी पावन याद में हर साल 1 से 3 अक्टूबर को गुरमत समागम का आयोजन संगत के सहयोग से किया जाता है । समागम के कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देते हुए गुरुद्वारा मीडिया प्रभारी बंटी ग्रोवर ने बताया कि इस समागम मे देश ,विदेश से गुणी ज्ञानी ,महापुरुष ,रागी जत्थे,कथा वाचक संगतो के दर्शन के लिए आते हैं ।समागम के पहले दिन शाम 7 से 12 तक जिसमे कवि दरबार दूसरे दिन<br />2 अक्टूबर को प्रातः 9 से अपराह्न 3 बजे तक पुनः शाम 7 से 12 बजे तक तीसरे दिन <br />3 अक्टूबर को प्रातः 10 बजे से 2 तक दीवान का आयोजन किया जाएगा। जिसमें<br /><br />ये जत्थे करेंगे संगत को निहाल <br /><br /> तीन दिवसीय इस समागम में सिंह साहिब ज्ञानी गुरबचन सिंह जी (जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब अमृतसर ), ज्ञानी रणजीत सिंह हेड ग्रंथी गुरुद्वारा बंगला साहेब ,संत बाबा नरेंद्र सिंह जी ,संत बाबा बलविंदर सिंह जी ,ज्ञानी गुरमीत सिंह जी ,संत बाबा ठाकुर सिंह जी ,संत बाबा सेवा सिंह जी ,बाबा रोशन सिंह जी ,संत ईश्वर सिंह जी ,भाई राय सिंह (हजूरी रागी दरबार साहिब अमृतसर ),भाई हरजोत सिंह जख्मी ,ढाडी जत्था ज्ञानी निर्मल सिंह नूर ,बाबा बंता सिंह (पंजाब ),ज्ञानी रणजीत सिंह गौहर ,ज्ञानी जसविंदर सिंह दरदी ,ज्ञानी अंग्रेज सिंह आदि अपने कथा कीर्तन से संगत को निहाल करेंगे ।<br />अमृत संचार --3 अक्टूबर को गुरुद्वारा मंजी साहिब पर होगा ।<br />पत्रकार वार्ता में महंत महेंद्र सिंह ,अमर सिंह ,हरपाल सिंह ,मीडिया प्रभारी गुरनाम सिंह ,समन्वयक बन्टी ग्रोवर ,रानी सिंह ,परमजीत सिंह सरना ,वात्सल्य उप्पधाय ,रणजीत सिंह ,हरबंस सिंह ,गुरभेज सिंह ,रोहित बंसल ,अनिल सोनी ,जोगेन्द्र सिंह ,मंजीत सिंह ,नरेंद्र सिंह खनूजा ,राजवीर सिंह ,श्याम भोजवानी ,रीटा आहूजा ,स्वीटी कौर मौजूद रहीं।<br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-7115382969154036742017-09-27T22:39:00.000-07:002017-09-27T22:39:01.878-07:00Muharram...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiaGi69enTESuRcxTDnrpIYGV2z2BR_V_qZfE1biXAnb3C-ASJXW0KStsK0yrUXseO5ZfbXjufBbHez4g6SiRP40gJuw9ohbfwyGipmTrQ77VBQMKoSnEg9gHWJDzgC-UUOgv7-4ZpSicA/s1600/muharram.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="200" data-original-width="360" height="110" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiaGi69enTESuRcxTDnrpIYGV2z2BR_V_qZfE1biXAnb3C-ASJXW0KStsK0yrUXseO5ZfbXjufBbHez4g6SiRP40gJuw9ohbfwyGipmTrQ77VBQMKoSnEg9gHWJDzgC-UUOgv7-4ZpSicA/s200/muharram.jpg" width="200" /></a></div>
The first month of the Islamic calendar, Muharram is considered one of the holiest months, second only to Ramadan, though it is not associated with revelry or celebration.<a name='more'></a> The word “Muharram” derived from the word ‘haram’ means forbidden and holds great significance for the Muslims. The date for Muharram keeps shifting every year as the the Islamic calendar is a lunar calendar. This year it started on September 21 and will continue till October 19.<br />
The month of Muharram is marked by mourning as Prophet Muhammad’s grandson Hussein Ibn Ali, along with his friends and family members, were martyred during this month in the Battle of Karbala. During the first ten days of the month, Shia Muslims, in their bid to recreate the pain of Ali and his deceased family members, flagellate themselves and beat their chest. Their actions are marked by expression of intense grief and lament. Few Muslims also observe fast on the ninth and tenth day of the month, and a lot of emphasis is laid on gratitude and abstinence.<br /><strong>साभार-http://indianexpress.com</strong></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-73391985349439024572017-09-26T22:33:00.003-07:002017-09-26T22:33:24.772-07:00विजयादशमी पर्व का है खास महत्व, ये है शुभ मुहूर्त<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHg_K8MghaHKGt7pKjljBHsFfGQEnar2o1YQDOJ8sV1cSL5QB-aZfcpKewL7z5e8qw7sueWzqZ0Uk-w_W4cH0n78hk2sff36WyGFkWgtImCioMTzkaxl_-tybkdFYqeHXVG_CHVEhPTFI/s1600/dusshera.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="279" data-original-width="200" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHg_K8MghaHKGt7pKjljBHsFfGQEnar2o1YQDOJ8sV1cSL5QB-aZfcpKewL7z5e8qw7sueWzqZ0Uk-w_W4cH0n78hk2sff36WyGFkWgtImCioMTzkaxl_-tybkdFYqeHXVG_CHVEhPTFI/s200/dusshera.jpg" width="143" /></a></div>
<strong>नई दिल्ली</strong> : जल्द ही दशहरे का त्योहार आने वाला है, इस पर्व को बहुत ही अहम माना गया है. विजयादशमी का त्योहार बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है. 10 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार के अंतिम दिन यह पर्व समाप्त होता है.<a name='more'></a>हिंदू कैलेंडर के अनुसार, शहरा अश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर महीने के दौरान आती है. भगवान राम ने 10 दिनों तक अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए रावण से युद्घ किया जिसमें वह पराजित हुआ. भगवान राम की यही जीत बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है. 10 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार के दौरान अलग-अलग जगहों पर रामलीला और नाटकों का आयोजिन किया जाता है. विजयादशमी से ठीक 9 दिन पहले नवरात्रि का त्योहार होता है जिसमें लोग देवी दुर्गा की पूजा करते हैं.<br />दशहरा दुर्गा पूजा के समारोह की समाप्ति का प्रतीक है, इस पर्व को भी बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में जाना जाता है. देवी दुर्गा ने लोगों की रक्षा के लिए महिषासुर नामक एक राक्षस का वध किया था, नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा और देवी चामुंडेश्वरी की पूजा की जाती है, जिन्होंने लोगों की रक्षा के लिए महिषासुर और असुरों की सेना को चामुंडा की पहाड़ियों में युद्ध कर पराजित किया था.<br />
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कब मनाया जाएगा दशहरे का त्योहार<br />इस साल ये त्योहार 30 सितंबर (शनिवार) को मनाया जाएगा. दशमी तिथि की शुरुआत 29 सितंबर रात 11 बजकर 49 मिनट से शुरू होकर 1 अक्टूबर रात 1 बजकर 35 मिनट तक रहेगी.<br />
<br />विजय मुहूर्त समय 2:08 बजे से दोपहर 2:55 बजे तक है<br />अपराह्न पूजा समय 1:21 से 3:42 बजे तक है<br /><strong>साभार-http://www.inkhabar.com</strong><br />
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Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-2922164049947365742017-09-19T19:39:00.001-07:002017-09-19T19:40:51.073-07:00नवरात्रि: मां दुर्गा के इन 9 रूपों की करें पूजा-अर्चना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiuNhSFX2A0rIQIspjZfagKyvh9CoVOe__WLtW6aP2Ew5HBCWXOv9M1qyW86pPvWfFf3Zf7s9FJCdai2q9gs9amJ3OOpi9Kp967JGk7u7nCWGlFpJsb3-3mhy1xkYfPhW2ri00kpkVGOAM/s1600/mata+di.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="183" data-original-width="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiuNhSFX2A0rIQIspjZfagKyvh9CoVOe__WLtW6aP2Ew5HBCWXOv9M1qyW86pPvWfFf3Zf7s9FJCdai2q9gs9amJ3OOpi9Kp967JGk7u7nCWGlFpJsb3-3mhy1xkYfPhW2ri00kpkVGOAM/s1600/mata+di.jpg" /></a></div>
21 सितंबर दिन गुरूवार से शारदीय नवरात्रि 2017 का शुभारंभ होने जा रहा है. नौ दिनों तक चलने वाली इस पूजा में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है. <a name='more'></a>नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा करने से भक्तों को हर मुश्किल से छुटकारा मिल जाता है.नवरात्र का अर्थ है ‘नौ रातों का समूह’ इसमें हर एक दिन दुर्गा मां के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है. नवरात्रि हर वर्ष विशेष रूप से दो बार मनाई जाती है. लेकिन शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि हिंदू वर्ष में 4 बार आती है. चैत्र, आषाढ़, अश्विन और माघ हिंदू कैलेंडर के अनुसार इन महीनों के शुक्ल पक्ष में आती है.<br />
आषाढ़ और माघ माह के नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है. अश्विन माह के शुक्ल पक्ष में आने वाले नवरात्रों को दुर्गा पूजा नाम से और शारदीय नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की नवरात्रि 21 सितंबर से शुरू होकर 29 सितंबर तक रहेगी.<br />
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<strong>क्यों कहते हैं शारदीय नवरात्र</strong><br />
नवरात्रों का त्योहार तब आता है जब दो मौसम मिल रहे हो, अश्विन माह में आने वाले नवरात्रों को शारदीय नवरात्रे इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इसके बाद से ही मौसम में कुछ ठंडक आने लगती है और शरद ऋतु की शुरुआत हो जाती है.<br />
<strong>कौन से दिन किस देवी का है महत्व</strong><br />
-21 सितंबर को मां शैलपुत्री की पूजा की जाएगी.<br />
-22 सितंबर को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का दिन है.<br />
-23 सितंबर को मां चन्द्रघंटा की पूजा अर्चना की जाएगी.<br />
-24 सितंबर का दिन मां कूष्मांडा की पूजा के नाम रहेगा.<br />
-25 सितंबर को मां स्कंदमाता की पूजा की जाएगी.<br />
-26 सितंबर को मां कात्यायनी की पूजा होगी.<br />
-27 सितंबर को मां कालरात्रि की पूजा संपन्न की जाएगी.<br />
-28 सितंबर को अष्टमी मनाई जाएगी और इस दिन मां महागौरी की पूजा होगी.<br />
-29 को महानवमी होगी और इस दिन मां सिद्धदात्री की पूजा और कन्या पूजन होगा.<br />
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<strong>क्यों होता है 9 कन्याओं का पूजन</strong><br />
नौ कन्याएं को नौ देवियों का रूप माना जाता है. इसमें दो साल की बच्ची, तीन साल की त्रिमूर्ति, चार साल की कल्याणी, पांच साल की रोहिणी, छ: साल की कालिका, सात साल की चंडिका, आठ साल की शाम्भवी, नौ साल की दुर्गा और दस साल की कन्या सुभद्रा का स्वरूप होती हैं.नवरात्रि के आते ही ही घर-घर में मां के आगमन की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं. गुरुवार से शुरू होने वाली नवरात्रि के नौ दिनों में यदि नौ विशेष चीजों का इस्तेमाल किया जाए तो इससे मां की कृपा भक्तों पर बनी रहती है.<br />
<strong>साभार</strong>- <a href="http://hindi.firstpost.com/">http://hindi.firstpost.com</a></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-5274277202104979112017-09-07T05:19:00.001-07:002017-09-07T05:19:46.230-07:00उत्तम क्षमा, सबको क्षमा, सबसे क्षमा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsF4LRVokjF34xyLe7FH1radqPiOqF7RSVoTuAGxMrKlzWifFo4vHJbXR6iTrr5G312l9WbO-DPuaCWckGt2maQqmLCYdmGD-BBBgcs8zb1oeAz6haBNm7taC7DuGSIS1w7gcWvsbZNuU/s1600/uttam+kshama.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="149" data-original-width="147" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsF4LRVokjF34xyLe7FH1radqPiOqF7RSVoTuAGxMrKlzWifFo4vHJbXR6iTrr5G312l9WbO-DPuaCWckGt2maQqmLCYdmGD-BBBgcs8zb1oeAz6haBNm7taC7DuGSIS1w7gcWvsbZNuU/s1600/uttam+kshama.jpg" /></a></div>
क्षमावाणी पर्व का अपना एक अलग ही महत्व होता है। क्षमा पर्व हमें सहनशीलता से रहने की प्रेरणा देता है।<br />
<a name='more'></a>अपने मन में क्रोध को पैदा न होने देना और अगर हो भी जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना। अपने भीतर आने वाले क्रोध के कारण को ढूँढकर, क्रोध से होने वाले अनर्थों के बारे में सोचना और अपने क्रोध को क्षमारूपी अमृत पिलाकर अपने आपको और दूसरों को भी क्षमा की नजरों से देखना। अपने से जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए खुद को क्षमा करना और दूसरे के प्रति भी इसी भाव को रखना इस पर्व का महत्व है।<br />
क्षमा पर्व मनाते समय अपने मन में छोटे-बड़े का भेदभाव न रखते हुए सभी से क्षमा माँगना इस पर्व का उद्देश्य है। हम सब यह क्यों भूल जाते हैं कि हम इंसान हैं और इंसानों से गलतियाँ हो जाना स्वाभाविक है। ये गलतियाँ या तो हमसे हमारी परिस्थितियाँ करवाती हैं या अज्ञानतावश हो जाती हैं। तो ऐसी गलतियों पर न हमें दूसरों को सजा देने का हक है, न स्वयं को। यदि आपको संतुष्टि के लिए कुछ देना है तो दीजिए ‘क्षमा’। क्षमा करने से आप दोहरा लाभ लेते हैं। एक तो सामने वाले को आत्मग्लानि भाव से मुक्त करते हैं व दूसरा दिलों की दूरियों को दूर कर सहज वातावरण का निर्माण करके उसके दिल में फिर से अपने लिए एक अच्छी जगह बना लेते हैं।<br />
तो आइए अभी भी देर नहीं हुई है। इस क्षमावणी पर्व से खुद को और औरों को भी रोशनी का नया संकल्प पाठ गढ़ते हुए क्षमा पर्व का असली आनंद उठाए और खुद भी जीए और दूसरों को भी जीने दे के संकल्प पर चलते हुए क्षमापर्व का लाभ उठाएँ।<br />
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<span style="color: blue;">“उत्तम क्षमा, सबको क्षमा, सबसे क्षमा”</span><br />
<b>साभार- http://www.vidyasagar.net</b></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7366968049024691907.post-59084221793052841082017-09-07T05:08:00.003-07:002017-09-07T05:08:57.766-07:00आज से शुरू हुए श्राद्ध, कुछ जरूरी नियम अपनाने से मिलेगी पितरों को शांति<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOF-DGjGcPghaxKLxvYnAjDO7CKVjEz9LQB_E2g0qUCCe1Yr8Furqkd7VEjT27jPZHQCxy7oOX8YRDCbohhZRszII54hf-SH_zBh_GgREMhFvjH3CBM7a0oQbTYeHkExyPTB3ks2JscbM/s1600/pitru-paksha-2017-new-620x400.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="100" data-original-width="126" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOF-DGjGcPghaxKLxvYnAjDO7CKVjEz9LQB_E2g0qUCCe1Yr8Furqkd7VEjT27jPZHQCxy7oOX8YRDCbohhZRszII54hf-SH_zBh_GgREMhFvjH3CBM7a0oQbTYeHkExyPTB3ks2JscbM/s1600/pitru-paksha-2017-new-620x400.jpg" /></a></div>
आज से पितृ पक्ष शुरू हो चुका है, आज से लेकर पंद्रह दिन तक पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए गरीबों और पंडितों को भोजन करवाते हैं।<br />
<a name='more'></a>श्रद्धा और मंत्र के मेल से पितरों की तृप्ति के निमित्त जो विधि होती है उसे ‘श्राद्ध’ कहते हैं। हमारे जिन संबंधियों का देहावसान हो गया है, जिनको दूसरा शरीर नहीं मिला है वे पितृलोक में अथवा इधर-उधर विचरण करते हैं, उनके लिए पिण्डदान किया जाता है। बच्चों एवं संन्यासियों के लिए पिण्डदान नहीं किया जाता। अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें : “हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दे) को आप संतुष्ट/सुखी रखें। इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन करता हूं।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगायें।<br />
<b>श्राद्ध में पालने योग्य नियम –</b><br />
– विचारशील पुरुष को चाहिए कि जिस दिन श्राद्ध करना हो उससे एक दिन पूर्व ही संयमी, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को निमंत्रण दे दे। परंतु श्राद्ध के दिन कोई अनिमंत्रित तपस्वी ब्राह्मण घर पर पधारें तो उन्हें भी भोजन कराना चाहिए।<br />
– भोजन के लिए उपस्थित अन्न अत्यंत मधुर, भोजनकर्ता की इच्छा के अनुसार तथा अच्छी प्रकार सिद्ध किया हुआ होना चाहिए। पात्रों में भोजन रखकर श्राद्धकर्ता को अत्यंत सुंदर एवं मधुर वाणी से कहना चाहिए कि ‘हे महानुभावो ! अब आप लोग अपनी इच्छा के अनुसार भोजन करें।’<br />
– श्रद्धायुक्त व्यक्तियों द्वारा नाम और गोत्र का उच्चारण करके दिया हुआ अन्न पितृगण को वे जैसे आहार के योग्य होते हैं वैसा ही होकर मिलता है।<br />
– श्राद्धकाल में शरीर, द्रव्य, स्त्री, भूमि, मन, मंत्र और ब्राह्मण-ये सात चीजें विशेष शुद्ध होनी चाहिए।<br />
– श्राद्ध में तीन बातों को ध्यान में रखना चाहिएः शुद्धि, अक्रोध और अत्वरा (जल्दबाजी नहीं करना)।<br />
– श्राद्ध में मंत्र का बड़ा महत्त्व है। श्राद्ध में आपके द्वारा दी गयी वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों न हो, लेकिन आपके द्वारा यदि मंत्र का उच्चारण ठीक न हो तो काम अस्त-व्यस्त हो जाता है। मंत्रोच्चारण शुद्ध होना चाहिए और जिसके निमित्त श्राद्ध करते हों उसके नाम का उच्चारण भी शुद्ध करना चाहिए।<br />
“सर्वपितृ तृप्ति मंत्र” : ॐ श्रीं ह्रीं कलीं स्वधा देव्यै स्वाहा ।<br />
श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन तिलक करके इस मंत्र की केवल एक माला जप करने से सर्वपितृ प्रसन्न हो जाते हैं। देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत।।<br />
“समस्त देवताओं, पितरों, महायोगिनियों, स्वधा एवं स्वाहा सबको हम नमस्कार करते हैं। ये सब शाश्वत फल प्रदान करने वाले हैं। “श्राद्ध करने के आरम्भ और अंत में इस श्लोक का तीन बार उच्चारण करने से श्राद्ध की त्रुटि क्षम्य हो जाती है, पितर प्रसन्न हो जाते हैं और आसुरी शक्तियां भाग जाती हैं।<br />
– जिनकी देहावसना-तिथि का पता नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करना चाहिए।<br />
– हिन्दुओं में जब पत्नी संसार से जाती है तो पति को हाथ जोड़कर कहती हैः ‘मुझसे कुछ अपराध हो गया हो तो क्षमा करना और मेरी सदगति के लिए आप प्रार्थना करना।’ अगर पति जाता है तो हाथ जोड़ते हुए पत्नी से कहता हैः ‘जाने-अनजाने में तेरे साथ मैंने कभी कठोर व्यवहार किया हो तो तू मुझे क्षमा कर देना और मेरी सदगति के लिए प्रार्थना करना।’<br />
हम एक दूसरे की सदगति के लिए जीते जी भी सोचते हैं, मरते समय भी सोचते हैं और मरने के बाद भी सोचते हैं।<br />
<b>साभार- http://www.jansatta.com</b></div>
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